Sunday, January 25, 2009

अनसुनी चीख

जननी का दर्जा दिया मुझे फिर बहन बना पुचकारा।
बेटी बन विदा किया मुझे पत्नी पर तनमन वारा॥

जाने क्यूँ समय पलट गया क्यूँ दृष्टि बदल गई नर की
मुझको ही अपमानित करके अपनी ही समझ मलिन कर दी

आँचल के अन्दर कौन छुपा है निर्जीव मशीन जब बोली।
सबके मुख पर छा गई गर्मी सबकी हालत पतली हो ली॥

भिन्न-भिन्न औजारों से काटा, कुचला और रौंदा गया
खिलने से पहले ही कली को तिल-तिल करके कौंदा गया

अनदेखे हाथों ने बरबस मांगी जीवन की भीख कभी।
बंद होंठों से निकली थी अनसुनी अन्दर की चीख कभी॥

दया आई दानव को क्षत-विक्षत करके फ़ेंक दिया
जीवन को जीवन से पहले धरती माँ के अधीन किया

बहन-बेटी के रिश्ते को बनने से पहले ही तोड़ दिया।
अजन्मी बेबस अबला को प्रभु के घर में ही छोड़ दिया॥

- Written by: Dr. Nirmal Prakash 'निर्मल'
(Also published in leading newspapers)

2 comments:

Ambrish Shrivastava said...

जो तुमने लिखा वो तुम्हारे उद्गार थे पर ये बताओ ये अब कोण कर रहा है | मेने आज तक ये देखा नहीं मेरे यहाँ पर तो बेतिओ को बेटो से ज्यादा प्यार मिलता है |

Preeti said...

Thanks for your comments. In India, this is still happening. Pick up the newspaper in morning and you will find it flooded with such type of incidents. Watch any news channel and it will report of such practices happening in villages. Even educated people are also seen involved in it.
In some families, daughters are given love more than even sons, but why people are still engaged in such activities?